He coined the notable slogan Inquilab Zindabad (translation of “Long live the revolution!”) in 1921. Together with Swami Kumaranand, he is regarded as the first person to demand complete independence for India in 1921 at the Ahmedabad Session of the Indian National Congress.
हसरत मोहानी हिन्दू मुस्लिम एकता के पक्षधर थे। उन्होंने तो श्रीकृष्ण की भक्ति में भी शायरी की है। वह बाल गंगाधर तिलक व भीमराव अम्बेडकर के करीबी दोस्त थे। 1946 में जब भारतीय संविधान सभा का गठन हुआ तो उन्हें उत्तर प्रदेश राज्य से संविधान सभा का सदस्य चुना गया।
1947 के भारत विभाजन का उन्होंने विरोध किया और हिन्दुस्तान में रहना पसंद किया। 13 मई 1951 को मौलाना साहब का अचानक निधन हो गया।
उन्होंने अपने कलामो में हुब्बे वतनी, मुआशरते इस्लाही,कौमी एकता, मज़हबी और सियासी नजरियात पर प्रकाश डाला है। 2014 में भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया है।
(Source: As read on Wikipedia)
Hasrat Mohani Shayari and Poems
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Some Latest Added Poems of Hasrat Mohani
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- मस्ती के फिर आ गये ज़माने – हसरत मोहानी
- जज़्ब-ए-कामिल को असर अपना दिखा देना था – हसरत मोहानी
- जज़्ब-ए-कामिल को असर अपना दिखा देना था – हसरत मोहानी
- देखना भी तो उन्हें दूर से देखा करना – हसरत मोहानी
- घिर के आख़िर आज बरसी है घटा बरसात की – हसरत मोहानी
- क्या किया मैंने कि इज़हारे-तमन्ना कर दिया – हसरत मोहानी
- अब तो उठ सकता नहीं आँखों से बार-ए-इंतज़ार – हसरत मोहनी
- तोड़कर अहद-ए-करम नाआशना हो जाइये – हसरत मोहनी
- रोशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम – हसरत मोहानी
- चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है – हसरत मोहनी
Some Hasrat Mohani Chuninda Sher Shayari
- राह में मिलिए कभी मुझ से तो अज़-राह-ए-सितम
होंट अपना काट कर फ़ौरन जुदा हो जाइए हक़ीक़त खुल गई ‘हसरत’ तिरे तर्क-ए-मोहब्बत की
तुझे तो अब वो पहले से भी बढ़ कर याद आते हैंमिरा इश्क़ भी ख़ुद-ग़रज़ हो चला है
तिरे हुस्न को बेवफ़ा कहते कहतेमुझ को देखो मिरे मरने की तमन्ना देखो
फिर भी है तुम को मसीहाई का दा’वा देखोनहीं आती तो याद उन की महीनों तक नहीं आती
मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैंऐसे बिगड़े कि फिर जफ़ा भी न की
दुश्मनी का भी हक़ अदा न हुआरौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम
दहका हुआ है आतिश-ए-गुल से चमन तमामहक़ीक़त खुल गई ‘हसरत’ तिरे तर्क-ए-मोहब्बत की
तुझे तो अब वो पहले से भी बढ़ कर याद आते हैंऔर तो पास मिरे हिज्र में क्या रक्खा है
इक तिरे दर्द को पहलू में छुपा रक्खा हैजबीं पर सादगी नीची निगाहें बात में नरमी
मुख़ातिब कौन कर सकता है तुम को लफ़्ज़-ए-क़ातिल सेचुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है