ज़फ़र गोरखपुरी का जन्म गोरखपुर ज़िले की बासगांव तहसील के बेदौली बाबू गांव में 5 मई 1935 को हुआ. वे बहुमुखी प्रतिभा वाले विशिष्ट शायर थे. उनकी शायरी में विविधरंगी शहरी जीवन के साथ-साथ लोक संस्कृति की महक और गांव के सामाजिक जीवन की मनोरम झांकी दिखती है. उनकी ग़ज़लों में एक ताजगी है जिसके वजह से आम आदमी तक उनकी शायरी पहुंची और खूब लोकप्रिय हुई. उनकी विविधतापूर्ण शायरी ने एक नई काव्य परम्परा को जन्म दिया. उर्दू के फ्रेम में हिंदी की कविता को उन्होंने बहुत कलात्मक अंदाज में पेश किया.
(Source: As read on Wikipedia)
Zafar Gorakhpuri Shayari
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- जो आए वो हिसाब-ए-आब-ओ-दाना करने वाले थे – ज़फ़र गोरखपुरी
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- मजबूरी के मौसम में भी जीना पड़ता है – ज़फ़र गोरखपुरी
- रास्ते कभी इतने ख़ून से न गीले थे – ज़फ़र गोरखपुरी
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- मेरे बाद किधर जाएगी तन्हाई – ज़फर गोरखपुरी
- धूप है क्या और साया क्या है – ज़फर गोरखपुरी