रास्ते कभी इतने ख़ून से न गीले थे – ज़फ़र गोरखपुरी

ज़फ़र गोरखपुरी ऐसे शायर हैं जिसने एक विशिष्ट और आधुनिक अंदाज़ अपनाकर उर्दू ग़ज़ल के क्लासिकल मूड को नया आयाम दिया. उनकी ग़ज़ल “रास्ते कभी इतने ख़ून से न गीले थे” पढ़िये.

Zafar Gorakhpuri

रास्ते कभी इतने ख़ून से न गीले थे
गो ज़मीं पे पहले भी भेड़िया क़बीले थे

मेरी आँख का यरक़ान सारा हुस्न ले डूबा
चान्द, फूल, तनहाई, सबके जिस्म पीले थे

तुझमें हमने देखा है आर-पार का मंज़र
वरना ख़ुद-शनासी के और भी वसीले थे

धज्जियाँ उड़ाने पर कुछ हवा भी माइल थी
और कुछ दरख़्तों के पैरहन भी ढीले थे

ज़ह्र पिछली नस्लों ने हमसा क्या पिया होगा
अपना जिस्म नीला है, उनके कण्ठ नीले थे

तू नहीं तो उनका भी, शह्द मर गया जानम
नीम जैसे ये लम्हे, आम से रसीले थे