The ghazal “Meri Ik Chhoti Si Koshish Tujhko Paane Ke Liye” by the urdu poet Zafar Gorakhpuri. ज़फ़र गोरखपुरी ऐसे शायर हैं जिसने एक विशिष्ट और आधुनिक अंदाज़ अपनाकर उर्दू ग़ज़ल के क्लासिकल मूड को नया आयाम दिया. उनकी ग़ज़ल “मेरी इक छोटी सी कोशिश तुझको पाने के लिए” सुनिए.
मेरी इक छोटी सी कोशिश तुझको पाने के लिए
मेरी इक छोटी सी कोशिश तुझको पाने के लिए
बन गई है मसअला सारे ज़माने के लिए
रेत मेरी उम्र, मैं बच्चा, निराले मेरे खेल
मैंने दीवारें उठाई हैं गिराने के लिए
वक़्त होठों से मेरे वो भी खुरचकर ले गया
एक तबस्सुम जो था दुनिया को दिखाने के लिए
देर तक हंसता रहा उन पर हमारा बचपना
तजरुबे आए थे संजीदा बनाने के लिए
यूं बज़ाहिर हम से हम तक फ़ासला कुछ भी न था
लग गई एक उम्र अपने पास आने के लिए
मैं ज़फ़र ता-ज़िंदगी बिकता रहा परदेस में
अपनी घरवाली को एक कंगन दिलाने के लिए
Meri Ik Chhoti Si Koshish Tujhko Paane Ke Liye
Meri Ik chhoti si koshish tujhko paane ke liye
Ban gaii hai masaalaa saare jmaane ke liye
Ret meri umr, main bachchaa, niraale mere khel
Maine diiwarein uthaaii hain giraane ke lie
Waqt hothon se mere vo bhii khurachakar le gayaa
Ek tabassum jo tha duniyaa ko dikhaane ke liye
Der tak hansataa rahaa un par hamaaraa bachapanaa
Tajarube aae the sanjiidaa banaane ke lie
Yun bajaahir ham se ham tak fasala kuchh bhii n tha
Lag gaii ek umr apane paas aane ke lie
Main zafar taa-jindagii bikataa rahaa parades men
Apani gharavaalii ko ek kangan dilaane ke lie