The ghazal “Mere baad kidhar jaaegii tanhaai” by the urdu poet Zafar Gorakhpuri. ज़फ़र गोरखपुरी ऐसे शायर हैं जिसने एक विशिष्ट और आधुनिक अंदाज़ अपनाकर उर्दू ग़ज़ल के क्लासिकल मूड को नया आयाम दिया. उनकी ग़ज़ल “मेरे बाद किधर जाएगी तन्हाई” सुनिए.
मेरे बाद किधर जाएगी तन्हाई
मेरे बाद किधर जाएगी तन्हाई
मैं जो मरा तो मर जाएगी तन्हाई
मैं जब रो रो के दरिया बन जाऊँगा
उस दिन पार उतर जाएगी तन्हाई
तन्हाई को घर से रुख़्सत कर तो दो
सोचो किस के घर जाएगी तन्हाई
वीराना हूँ आबादी से आया हूँ
देखेगी तो डर जाएगी तन्हाई
यूँ आओ कि पावों की भी आवाज़ न हो
शोर हुआ तो मर जाएगी तन्हाई
Mere Baad Kidhar Jaaegii Tanhaai
Mere baad kidhar jaaegii tanhaai
Main jo maraa to mar jaaegii tanhaai
Main jab ro ro ke dariyaa ban jaaoongaa
Us din paar utar jaaegii tanhaai
Tanhaaii ko ghar se rukhsat kar to do
Socho kis ke ghar jaaegii tanhaai
Viiraanaa hoon aabaadii se aayaa hoon
Dekhegii to Dar jaaegii tanhaai
Yun aao ki paavon kii bhii aavaaj n ho
Shor huaa to mar jaaegii tanhaai