आख़िरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के उस्ताद और राजकवि शेख़ इब्राहीम ज़ौक़ की एक ग़ज़ल “कौन वक़्त ऐ वाए गुज़रा जी को घबराते हुए” पढ़िए.
निगाह का वार था दिल पर फड़कने जान लगी
चली थी बरछी किसी पर किसी के आन लगी
किसी के दिल का सुनो हाल दिल लगाकर तुम
जो होवे दिल को तुम्हारे भी मेहरबान लगी
तू वह हलाले जबीं है की तारे बन बनकर
रहे हैं तेरी तरफ चश्म इक जहान लगी
उदारी हिर्स ने आकर जहान में सबकी ख़ाक
नहीं है किसको हवा ज़ेरे-आसमान लगी
किसी की काविशे-मिज़गां से आज सारी रात
नहीं पलक से पलक मेरी एक आन लगी
तबाह बहरे-जहां में थी अपनी कश्ती-ए-उम्र
सो टूट-फूट के बारे किनारे आन लगी |