दर-ए-उमीद के दरयूज़ागर – फैज़ अहमद फैज़

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ भारतीय उपमहाद्वीप के एक विख्यात पंजाबी शायर थे. वे उर्दू शायरी के सबसे बड़े नाम में गिने जाते हैं. उनकी एक ग़ज़ल सुनिए – दर-ए-उमीद के दरयूज़ागर

Faiz ahmad Faiz album Shaam e shehr e yaaran

दर-ए-उमीद के दरयूज़ागर

फिर फरेरे बन के मेरे तन-बदन की धज्जीयां
शहर के दीवारो-दर को रंग पहनाने लगीं
फिर कफ़-आलूदा ज़बानें मदहो-ज़म की कमचीयां
मेरे ज़हनो-गोश के ज़ख़्मों पे बरसाने लगीं

फिर निकल आये हवसनाकों के रकसां तायफ़े
दर्दमन्दे-इश्क पर ठट्ठे लगाने के लिए
फिर दुहल करने लगे तशहीरे-इख़लासो-वफ़ा
कुशता-ए-सिदको-सफ़ा का दिल जलाने के लिए

हम कि हैं कब से दर-ए-उमीद के दरयूज़ागर
ये घड़ी गुज़री तो फिर दस्ते-तलब फैलायेंगे
कूचा-ओ-बाज़ार से फिर चुन के रेज़ा रेज़ा ख़्वाब
हम यूं ही पहले की सूरत जोड़ने लग जायेंगे

(दरयूज़ागर=भीखारी, फरेरे=झंडियाँ, कफ़-
आलूदा=गंदी, मदहो-ज़म=प्रशन्सा-निंदा,
ज़हनो-गोश=दिमाग़-कान, रकसां तायफ़े=
नाच मंडलियां, दुहल=नगाड़े, तशहीरे-इख़लासो-
वफ़ा=प्यार का प्रचार, कुशता-ए-सिदको-सफ़ा=
सत्य और ईमानदारी पर मिटे हुए, रेज़ा रेज़ा
ख़्वाब=टूटे सप्ने)

This ghazal is from the Faiz Ahmad Faiz album’s Shaam-e-Shehr-e-Yaaran. Faiz Ahmad Faiz has recited his ghazal in his own voice. Listen to the audio on these streaming platforms –