तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो – मिर्ज़ा ग़ालिब

Presenting the ghazal “Tum Jaano Tum Ko Gair Se Jo”, written by the Urdu Poet Mirza Ghalib. This ghazal has also been sung by Talat Mahmood. The link to audio is given below.

Mirza Ghalib Shayari - Urdu Shayari Ghazal and Sher of Ghalib

तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो

तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो
मुझ को भी पूछते रहो तो क्या गुनाह हो

बचते नहीं मुवाख़ज़ा-ए-रोज़-ए-हश्र से
क़ातिल अगर रक़ीब है तो तुम गवाह हो

क्या वो भी बे-गुनह-कुश ओ हक़-ना-शनास हैं
माना कि तुम बशर नहीं ख़ुर्शीद ओ माह हो

उभरा हुआ नक़ाब में है उन के एक तार
मरता हूँ मैं कि ये न किसी की निगाह हो

जब मय-कदा छुटा तो फिर अब क्या जगह की क़ैद
मस्जिद हो मदरसा हो कोई ख़ानक़ाह हो

सुनते हैं जो बहिश्त की तारीफ़ सब दुरुस्त
लेकिन ख़ुदा करे वो तिरा जल्वा-गाह हो

‘ग़ालिब’ भी गर न हो तो कुछ ऐसा ज़रर नहीं
दुनिया हो या रब और मिरा बादशाह हो

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