आज इक हर्फ़ को फिर ढूँडता फिरता है ख़याल – फैज़ अहमद फैज़

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ भारतीय उपमहाद्वीप के एक विख्यात पंजाबी शायर थे. वे उर्दू शायरी के सबसे बड़े नाम में गिने जाते हैं. उनकी एक ग़ज़ल सुनिए – आज इक हर्फ़ को फिर ढूँडता फिरता है ख़याल

Faiz ahmad Faiz album Shaam e shehr e yaaran

आज इक हर्फ़ को फिर ढूँडता फिरता है ख़याल

आज इक हर्फ़ को फिर ढूँडता फिरता है ख़याल
मध भरा हर्फ़ कोई ज़हर भरा हर्फ़ कोई
दिल-नशीं हर्फ़ कोई क़हर भरा हर्फ़ कोई
हर्फ़-ए-उल्फ़त कोई दिलदार-ए-नज़र हो जैसे
जिस से मिलती है नज़र बोसा-ए-लब की सूरत
इतना रौशन कि सर-ए-मौजा-ए-ज़र हो जैसे
सोहबत-ए-यार में आग़ाज़-ए-तरब की सूरत
हर्फ़-ए-नफ़रत कोई शमशीर-ए-ग़ज़ब हो जैसे
ता-अबद शहर-ए-सितम जिस से तबह हो जाएँ
इतना तारीक कि शमशान की शब हो जैसे
लब पे लाऊँ तो मिरे होंट सियह हो जाएँ

आज हर सुर से हर इक राग का नाता टूटा
ढूँडती फिरती है मुतरिब को फिर उस की आवाज़
जोशिश-ए-दर्द से मजनूँ के गरेबाँ की तरह
चाक-दर-चाक हुआ आज हर इक पर्दा-ए-साज़
आज हर मौज-ए-हवा से है सवाली ख़िल्क़त
ला कोई नग़्मा कोई सौत तिरी उम्र दराज़
नौहा-ए-ग़म ही सही शोर-ए-शहादत ही सही
सूर-ए-महशर ही सही बाँग-ए-क़यामत ही सही

This ghazal is from the Faiz Ahmad Faiz album’s Shaam-e-Shehr-e-Yaaran. Faiz Ahmad Faiz has recited his ghazal in his own voice. Listen to the audio on these streaming platforms –