याद किसी की चाँदनी बन कर कोठे कोठे उतरी है – वसीम बरेलवी

वसीम बरेलवी की खूबसूरत ग़ज़ल सुनिए – याद किसी की चाँदनी बन कर कोठे कोठे उतरी है. 

 

याद किसी की चाँदनी बन कर कोठे कोठे छिटकी है
याद किसी की धूप हुई है ज़ीना ज़ीना उतरी है

रात की रानी सहन-ए-चमन में गेसू खोले सोती है
रात-बेरात उधर मत जाना इक नागिन भी रहती है

तुम को क्या तुम ग़ज़लें कह कर अपनी आग बुझा लोगे
उस के जी से पूछो जो पत्थर की तरह चुप रहती है

पत्थर लेकर गलियों गलियों लड़के पूछा करते हैं
हर बस्ती में मुझ से आगे शोहरत मेरी पहुँचती है

मुद्दत से इक लड़की के रुख़्सार की धूप नहीं आई
इसी लिये मेरे कमरे में इतनी ठंडक रहती है

Yaad kisii kii chaandanii ban kar Kothe Kothe Chhitaki Hai

Yaad kisii kii chaandanii ban kar kothe kothe chhitakii hai
Yaad kisii kii dhoop huii hai jiinaa-jiinaa utarii hai

Raat kii raanii sahane-chaman men gesoo khole sotii hai
Raat bo raat udhar mat jaanaa ik naagin bhii rahatii hai

Tumako kyaa gjlen kah kar apanii aag bujhaa loge
Usake jii se poochho jo patthar kii tarah chup rahatii hai

Patthar lekar galiyon-galiyon laDke poochhaa karate hain
Har bastii men aage shoharat merii pahunchatii hai

Muddat se ik laDkii ke rukhasaar kii dhoop nahiin aaii
Isiilie mere kamare men itanii ThanDak rahatii hai

  • वसीम बरेलवी