“नासिर” क्या कहता फिरता है कुछ न सुनो तो बेहतर है – नासिर काज़मी

नासिर काज़मी के ग़ज़लों में देश बटवारे का दुःख झलकता है, साथ ही उनके कलाम में उनका युग बोलता हुआ दिखाई देता है. आज पढ़िए उनकी एक ग़ज़ल “”नासिर” क्या कहता फिरता है कुछ न सुनो तो बेहतर है”.

Nasir Kazmi

“नासिर” क्या कहता फिरता है कुछ न सुनो तो बेहतर है
दीवाना है दीवाने के मुँह न लगो तो बेहतर है

कल जो था वो आज नहीं जो आज है कल मिट जायेगा
रूखी-सूखी जो मिल जाये शुक्र करो तो बेहतर है

कल ये ताब-ओ-तवाँ न रहेगी ठंडा हो जायेगा लहू
नाम-ए-ख़ुदा हो जवाँ अभी कुछ कर गुज़रो तो बेहतर है

क्या जाने क्या रुत बदले हालात का कोई ठीक नहीं
अब के सफ़र में तुम भी हमारे साथ चलो तो बेहतर है

कपड़े बदल कर बाल बना कर कहाँ चले हो किस के लिये
रात बहुत काली है “नासिर” घर में रहो तो बेहतर है