हम पढ़ रहे थे ख़्वाब के पुर्ज़ों को जोड़ के – शहरयार

शहरयार एक भारतीय शिक्षाविद और भारत में उर्दू शायरी के दिग्गज थे. प्रस्तुत है उनकी एक ग़ज़ल “हम पढ़ रहे थे ख़्वाब के पुर्ज़ों को जोड़ के”

Shaharyaar

हम पढ़ रहे थे ख़्वाब के पुर्ज़ों को जोड़ के

हम पढ़ रहे थे ख़्वाब के पुर्ज़ों को जोड़ के
आँधी ने ये तिलिस्म भी रख डाला तोड़ के

आग़ाज़ क्यों किया था सफ़र उन ख़्वाबों का
पछता रहे हो सब्ज़ ज़मीनों को छोड़ के

इक बूँद ज़हर के लिये फैला रहे हो हाथ
देखो कभी ख़ुद अपने बदन को निचोड़ के

कुछ भी नहीं जो ख़्वाब की तरह दिखाई दे
कोई नहीं जो हम को जगाये झिन्झोड़ के

इन पानियों से कोई सलामत नहीं गया
है वक़्त अब भी कश्तियाँ ले जाओ मोड़ के