वसीम बरेलवी जो कि उर्दू शायरी के ये एक बेहद प्रसिद्ध शायर हैं, उनकी ये खूबसूरत ग़ज़ल पढ़िए जिसका शीर्षक है – “कही-सुनी पे बहुत एतबार करने लगे”.
कही-सुनी पे बहुत एतबार करने लगे
मेरे ही लोग मुझे संगसार करने लगे
पुराने लोगों के दिल भी हैं ख़ुशबुओं की तरह
ज़रा किसी से मिले, एतबार करने लगे
नए ज़माने से आँखें नहीं मिला पाये
तो लोग गुज़रे ज़माने से प्यार करने लगे
कोई इशारा, दिलासा न कोई वादा मगर
जब आई शाम तेरा इंतज़ार करने लगे
हमारी सादा -मिजाज़ी की दाद दे कि तुझे
बग़ैर परखे तेरा एतबार करने लगे.