मोहसिन नकवी उर्दू शायरी के एक बड़े नाम वाले शायर हैं. उनकी लिखी हुई एक ग़ज़ल आज पढ़िए – “निगाह-ए-यार पे पलकों की अगर लगाम न हो”
निगाह-ए-यार पे पलकों की अगर लगाम न हो
बदन में दूर तलक ज़िन्दगी का नाम न हो
वो बे-नकाब जो फिरती है गली कूंचों में
तो कैसे शहर के लोगों में क़त्ल-ए-आम न हो
मुझे यकीं है कि दुनिया में दर्द बढ़ जाएँ
अगर ये पीने पिलाने के एहतमाम न हो
बिठा के सामने बस देखता रहूँ उस को
इस के सिवा मुझे दुनिया का कोई काम न हो
जो उसको देख ले अफताब एक नज़र ‘मोहसिन’
मेरे शहर की गलियों में कभी शाम न हो