अहमद नदीम क़ासमी एक तरक़्क़ी-पसंद शायर के रूप में जाने जाते हैं. महफ़िल पर पढ़िए उनकी एक बेहतरीन ग़ज़ल जिसका शीर्षक है – जेहनों में ख़याल जल रहे हैं
जेहनों में ख़याल जल रहे हैं – अहमद नदीम कासमी
जेहनों में ख़याल जल रहे हैं|
सोचों के अलाव-से लगे हैं|
दुनिया की गिरिफ्त में हैं साये,
हम अपना वुजूद ढूंढते हैं|
अब भूख से कोई क्या मरेगा,
मंडी में ज़मीर बिक रहे हैं|
माज़ी में तो सिर्फ़ दिल दुखते थे,
इस दौर में ज़ेहन भी दुखे हैं|
सिर काटते थे कभी शहनशाह,
अब लोग ज़ुबान काटते हैं|
हम कैसे छुड़ाएं शब से दामन,
दिन निकला तो साए चल पड़े हैं|
लाशों के हुजूम में भी हंस दें,
अब ऐसे भी हौसले किसे हैं|