हस्ती अपनी हबाब की सी है – मीर तकी मीर

ख़ुदा-ए-सुखन मोहम्मद तकी उर्फ मीर तकी “मीर” जो उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे, उनकी ग़ज़ल “हस्ती अपनी हबाब की सी है” पढ़िए, जिसे गाया है हरिहरन ने.

Meer Taqi Meer

हस्ती अपनी हबाब की सी है

हस्ती अपनी हबाब की सी है ।
ये नुमाइश सराब की सी है ।।

नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए,
हर एक पंखुड़ी गुलाब की सी है ।

चश्म-ए-दिल खोल इस आलम पर,
याँ की औक़ात ख़्वाब की सी है ।

बार-बार उस के दर पे जाता हूँ,
हालत अब इज़्तिराब की सी है ।

नुक़्ता-ए-ख़ाल से तिरा अबरू
बैत इक इंतिख़ाब की-सी है

मैं जो बोला कहा के ये आवाज़,
उसी ख़ाना ख़राब की सी है ।

आतिश-ए-ग़म में दिल भुना शायद
देर से बू कबाब की-सी है ।

देखिए अब्र की तरह अब के
मेरी चश्म-ए-पुर-आब की-सी है ।

‘मीर’ उन नीमबाज़ आँखों में,
सारी मस्ती शराब की सी है ।

अर्थ: हबाब – बुलबुला
इज़्तिराब – बेचैनी
नुक़्ता-ए-ख़ाल – त्वचा के ऊपर बने निशान
बैत – शे’र
इंतिख़ाब – पसन्दगी
चश्म-ए-पुर-आब – आंसुओं से भीगी आँखें
नीमबाज़ -अधखुली