मर के टूटा है कहीं सिलसिला-ए-क़ैद-ए-हयात – फ़ानी बदायुनी

फ़ानी बदायुनी को निराशावाद का पेशवा कहा जाता है. उनकी शायरी दुख व पीड़ा की शायरी है. प्रस्तुत है उनकी एक वैसी ही शायरी “मर के टूटा है कहीं सिलसिला-ए-क़ैद-ए-हयात”.

फ़ानी बदायूनी Fani Badayuni

मर के टूटा है कहीं सिलसिला-ए-क़ैद-ए-हयात
मगर इतना है कि ज़ंजीर बदल जाती है

असर-ए-इश्क़ तग़ाफ़ुल भी है बेदाद भी है
वही तक़्सीर है ताज़ीर बदल जाती है

कहते कहते मिरा अफ़्साना गिला होता है
देखते देखते तक़दीर बदल जाती है

रोज़ है दर्द-ए-मोहब्बत का निराला अंदाज़
रोज़ दिल में तिरी तस्वीर बदल जाती है

घर में रहता है तिरे दम से उजाला ही कुछ और
मह ओ ख़ुर्शीद की तनवीर बदल जाती है

ग़म नसीबों में है ‘फ़ानी’ ग़म-ए-दुनिया हो कि इश्क़
दिल की तक़दीर से तदबीर बदल जाती है