दराज़ है शब-ए-ग़म सोज़-ओ-साज़ साथ रहे – मख़दूम मुहिउद्दीन

मख़दूम मुहिउद्दीन जिन्हें शायर-ए-इन्क़िलाब (क्रांति का कवि) भी कहा जाता है, प्रस्तुत है उन्हीं की एक बेहद मशहूर ग़ज़ल “दराज़ है शब-ए-ग़म सोज़-ओ-साज़ साथ रहे”

Makhdoom Mohiuddin

दराज़ है शब-ए-ग़म सोज़-ओ-साज़ साथ रहे
मुसाफ़िरो मय-ए-मीना-गुदाज़ साथ रहे

क़दम क़दम पे अँधेरों का सामना है यहाँ
सफ़र कठिन है दम-ए-शो’ला-साज़ साथ रहे

ये कोह क्या है ये दश्त-ए-अलम-फ़ज़ा क्या है
जो इक तिरी निगह-ए-दिल-नवाज़ साथ रहे

कोई रहे न रहे एक आह इक आँसू
ब-सद ख़ुलूस ब-सद इम्तियाज़ साथ रहे

ये मय-कदा है नहीं सैर-ए-दैर सैर-ए-हरम
नज़र-अफ़ीफ़ दिल-ए-पाक-बाज़ साथ रहे