अश्क अपना कि तुम्हारा नहीं देखा जाता – मोहसिन नकवी

मोहसिन नकवी उर्दू शायरी के एक बड़े नाम वाले शायर हैं. उनकी लिखी हुई एक ग़ज़ल आज पढ़िए – “अश्क अपना कि तुम्हारा नहीं देखा जाता”

Mohsin Naqvi

अश्क अपना कि तुम्हारा नहीं देखा जाता
अब्र की ज़द में सितारा नहीं देखा जाता

अपनी शह-ए-रग का लहू तन में रवाँ है जब तक
ज़ेर-ए-ख़ंजर कोई प्यारा नहीं देखा जाता

मौज-दर-मौज उलझने की हवस बे-मा’नी
डूबता हो तो सहारा नहीं देखा जाता

तेरे चेहरे की कशिश थी कि पलट कर देखा
वर्ना सूरज तो दोबारा नहीं देखा जाता

आग की ज़िद पे न जा फिर से भड़क सकती है
राख की तह में शरारा नहीं देखा जाता

ज़ख़्म आँखों के भी सहते थे कभी दिल वाले
अब तो अबरू का इशारा नहीं देखा जाता

क्या क़यामत है कि दिल जिस का नगर है ‘मोहसिन’
दिल पे उस का भी इजारा नहीं देखा जाता