बस एक अपने ही क़दमों की चाप सुनता हूँ – महमूद शाम

महमूद शाम पाकिस्तान के प्रतिष्ठित पत्रकार शायर हैं. पढ़िए उनकी एक बेहद खूबसूरत ग़ज़ल “बस एक अपने ही क़दमों की चाप सुनता हूँ”

Mahmood Shaam

बस एक अपने ही क़दमों की चाप सुनता हूँ
मैं कौन हूँ कि भरे शहर में भी तन्हा हूँ

जहाँ मैं जिस्म था तू ने वहाँ तो साथ दिया
वहाँ भी आ कि जहाँ मैं तमाम साया हूँ

वो एक मोड़ भी इस रह पे आएगा कि जहाँ
मिला के हाथ तू बोलेगा मैं तो चलता हूँ

तिरी जुदाई का ग़म है न तेरे मिलने का
मैं अपनी आग में दिन रात जलता रहता हूँ

गए वो रोज़ कि तू बाइस-ए-क़रार थी जब
तिरी झलक से भी अब तो उदास होता हूँ

मिरे बग़ैर है मुमकिन कहाँ तिरी तकमील
मुझे पुकार कि मैं ही तिरा किनारा हूँ

कभी तो डूब सही शाम के समुंदर में
कि मैं सदा ही जवाहर निकाल लाया हूँ