ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे – फ़राज़

अहमद फ़राज़ साहब की ये ग़ज़ल सुनिए – ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे. बेहद खूबसूरत ग़ज़ल को पढ़िए और नीचे दिए गए लिंक पर ऑडियो सुने.

ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे

हमसफ़र चाहिये हुजूम नहीं
इक मुसाफ़िर भी काफ़िला है मुझे

तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे

लब कुशां हूं तो इस यकीन के साथ
कत्ल होने का हौसला है मुझे

दिल धडकता नहीं सुलगता है
वो जो ख्वाहिश थी, आबला है मुझे

कौन जाने कि चाहतो में फ़राज़
क्या गंवाया है क्या मिला है मुझे

Zindagi Se Yahi Gila Hai Mujhe 

Zindagii se yahii gilaa hai mujhe
Tu bahut der se milaa hai mujhe

Hamasafr chaahiye hujoom nahiin
Ek musaafir bhii kaafilaa hai mujhe

Tu mohabbat se koii chaal to chal
Haar jaane kaa hausalaa hai mujhe

Lab kushaan hoon to is yakiin ke saath
Katl hone kaa hausalaa hai mujhe

Dil dhaDakataa nahiin sulagataa hai
Vo jo khvaahish thii, aabalaa hai mujhe

Kaun jaane ki chaahato men fraaj
Kyaa ganvaayaa hai kyaa milaa hai mujhe