मख़दूम मुहिउद्दीन जिन्हें शायर-ए-इन्क़िलाब (क्रांति का कवि) भी कहा जाता है, प्रस्तुत है उन्हीं की एक बेहद मशहूर ग़ज़ल “उसी चमन में चलें जश्न-ए-याद-ए-यार करें”
उसी चमन में चलें जश्न-ए-याद-ए-यार करें
उसी चमन में चलें जश्न-ए-याद-ए-यार करें
दिलों को चाक गरेबाँ को तार-तार करें
शमीम-ए-पैरहन-ए-यार क्या निसार करें
तुझी को दिल से लगा लें तुझी को प्यार करें
सुनाती फिरती हैं आँखें कहानियाँ क्या क्या
अब और क्या कहें किस किस को सोगवार करें
उठो कि फ़ुर्सत-ए-दीवानगी ग़नीमत है
क़फ़स को ले के उड़ें गुल को हम-कनार करें
कमान-ए-अबरू-ए-ख़ूबाँ का बाँकपन है ग़ज़ल
तमाम रात ग़ज़ल गाएँ दीद-ए-यार करें