ये सोच कर कि तेरी जबीं पर न बल पड़े – शहज़ाद अहमद

शहज़ाद अहमद उर्दू शायरी के एक चर्राचित नाम हैं. आज पढ़िए उनकी एक बेहतरीन ग़ज़ल ” ये सोच कर कि तेरी जबीं पर न बल पड़े”.

Shahzad Ahmad Shahzad

ये सोच कर कि तेरी जबीं पर न बल पड़े

ये सोच कर कि तेरी जबीं पर न बल पड़े
बस दूर ही से देख लिया और चल पड़े

दिल में फिर इक कसक सी उठी मुद्दतों के बाद
इक उम्र के रुके हुए आँसू निकल पड़े

सीने में बे-क़रार हैं मुर्दा मोहब्बतें
मुमकिन है ये चराग़ कभी ख़ुद ही जल पड़े

ऐ दिल तुझे बदलती हुई रुत से क्या मिला
पौदों में फूल और दरख़्तों में फल पड़े

अब किस के इंतिज़ार में जागें तमाम शब
वो साथ हो तो नींद में कैसे ख़लल पड़े

सूरज सी उस की तब्अ है शोला सा उस का रंग
छू जाए उस बदन को तो पानी उबल पड़े

‘शहज़ाद’ दिल को ज़ब्त का यारा नहीं रहा
निकला जो माहताब समुंदर उछल पड़े