फ़ानी बदायुनी को निराशावाद का पेशवा कहा जाता है. उनकी शायरी दुख व पीड़ा की शायरी है. प्रस्तुत है उनकी एक वैसी ही शायरी “वो जी गया जो इश्क़ में जी से गुज़र गया”.
वो जी गया जो इश्क़ में जी से गुज़र गया
ईसा को हो नवेद कि बीमार मर गया
आज़ाद कुछ हुए हैं असीरान-ए-ज़िंदगी
यानी जमाल-ए-यार का सदक़ा उतर गया
दुनिया में हाल-ए-आमद-ओ-रफ़्त-ए-बशर न पूछ
बे-इख़्तियार आ के रहा बे-ख़बर गया
शायद कि शाम-ए-हिज्र के मारे भी जी उठें
सुब्ह-ए-बहार-ए-हश्र का चेहरा उतर गया
आया कि दिल गया कोई पूछे तो क्या कहूँ
ये जानता हूँ दिल इधर आया उधर गया
हाँ सच तो है शिकायत-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर ग़लत
दिल से गुज़र के तीर तुम्हारा किधर गया
दिल का इलाज कीजिए अब या न कीजिए
अपना जो काम था वो ग़म-ए-यार कर गया
क्या कहिए अपनी गर्म-रवी-हा-ए-शौक़ को
कुछ दूर मेरे साथ मिरा राहबर गया
‘फ़ानी’ की ज़ात से ग़म-ए-हस्ती की थी नुमूद
शीराज़ा आज दफ़्तर-ए-ग़म का बिखर गया