फ़ानी बदायुनी को निराशावाद का पेशवा कहा जाता है. उनकी शायरी दुख व पीड़ा की शायरी है. प्रस्तुत है उनकी एक वैसी ही शायरी “किसी के एक इशारे में किस को क्या न मिला”.
किसी के एक इशारे में किस को क्या न मिला
बशर को ज़ीस्त मिली मौत को बहाना मिला
मज़ाक़-ए-तल्ख़-पसंदी न पूछ इस दिल का
बग़ैर मर्ग जिसे ज़ीस्त का मज़ा न मिला
दबी ज़बाँ से मिरा हाल चारासाज़ न कह
बस अब तू ज़हर ही दे ज़हर में दवा न मिला
ख़ुदा की देन नहीं ज़र्फ़-ए-ख़ल्क़ पर मौक़ूफ़
ये दिल भी क्या है जिसे दर्द का ख़ज़ाना मिला
दुआ गदा-ए-असर है गदा पे तकिया न कर
कि ए’तिमाद-ए-असर क्या मिला मिला न मिला
ज़ुहूर-ए-जल्वा को है एक ज़िंदगी दरकार
कोई अजल की तरह देर-आश्ना न मिला
तलाश-ए-ख़िज़्र में हूँ रू-शनास-ए-ख़िज़्र नहीं
मुझे ये दिल से गिला है कि रहनुमा न मिला
निशान-ए-मेहर है हर ज़र्रा ज़र्फ़-ए-मेहर नहीं
ख़ुदा कहाँ न मिला और कहीं ख़ुदा न मिला
मिरी हयात है महरूम-ए-मुद्दा-ए-हयात
वो रहगुज़र हूँ जिसे कोई नक़्श-ए-पा न मिला
वो ना-मुराद-ए-अजल बज़्म-ए-यास में भी नहीं
यहाँ भी ‘फ़ानी’-ए-आवारा का पता न मिला