मोमिन ख़ाँ मोमिन एक मशहूर उर्दू कवि थे. इनकी शायरी में मुहब्बत, और रंगीन मिजाजी का असर दीखता है. प्रस्तुत है उनकी एक ग़ज़ल “उलझे न ज़ुल्फ़ से जो परेशानियों में हम”.
उलझे न ज़ुल्फ़ से जो परेशानियों में हम
करते हैं इसपे नाज़ अदा-दानियों में हम
सरगर्म-रक़्स-ताज़ा हैं क़ुरबानियों में हम
शोख़ी से किसकी आए हैं जोलानियों में हम
साबित है जुर्मे-शिकवा न ज़ाहिर गुनाहे-रश्क़
हैराँ हैं आप अपनी परेशानियों में हम
मारे ख़ुशी के मर गये सुबहे-शबे-फ़िराक़
कितने सुबुक हुए हैं गराँ-जानियों में हम
आता है ख़्वाब में भी तेरी ज़ुल्फ़ का ख़्याल
बेतौर घिर गए हैं परेशानियों में हम
देखा इधर को तूने कि बस दम निकल गया
उतरे नज़र से अपनी निगहबानियों में हम