तू कहाँ जाएगी कुछ अपना ठिकाना कर ले – मोमिन ख़ाँ मोमिन

मोमिन ख़ाँ मोमिन एक मशहूर उर्दू कवि थे. इनकी शायरी में मुहब्बत, और रंगीन मिजाजी का असर दीखता है. प्रस्तुत है उनकी एक ग़ज़ल “तू कहाँ जाएगी कुछ अपना ठिकाना कर ले”.

Momin Khan Momin

तू कहाँ जाएगी कुछ अपना ठिकाना कर ले
हम तो कल ख्वाब-ए-अदम में शब-ए-हिजराँ होंगे

एक हम हैं कि हुए ऎसे पशेमान कि बस
एक वो हैं कि जिन्हें चाह के अरमाँ होंगे

हम निकालेंगे सुन ऐ मौज-ए-सबा बल तेरा
उसकी ज़ुल्फ़ों के अगर बाल परेशाँ होंगे

फिर बहार आई वही दश्त नवरदी होगी
फिर वही पाँव वही खार-ए-मुग़ीलाँ होंगे

मिन्नत-ए-हज़रत-ए-ईसा न उठाएँगे कभी
ज़िन्दगी के लिए शर्मिन्दा-ए-एहसाँ होंगे?

उम्र तो सारी क़टी इश्क़-ए-बुताँ में ‘मोमिन’
आखिरी उम्र में क्या खाक मुसलमाँ होंगे