फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ भारतीय उपमहाद्वीप के एक विख्यात पंजाबी शायर थे. वे उर्दू शायरी के सबसे बड़े नाम में गिने जाते हैं. उनकी एक ग़ज़ल सुनिए – हम तो मज़बूर थे इस दिल से कि जिसमें हर दम
हम तो मज़बूर थे इस दिल से कि जिसमें हर दम
हम तो मज़बूर थे इस दिल से कि जिसमें हर दम
गरदिशे-ख़ूं से वो कोहराम बपा रहता है
जैसे रिन्दाने-बलानोश जो मिल बैठें ब-हम
मयकदे में सफ़र-ए-जाम बपा रहता है
सोज़े-ख़ातिर को मिला जब भी सहारा कोई
दाग़े-हरमान कोई दर्द-ए-तमन्ना कोई
मरहमे-यास से मायल-ब-शिफ़ा होने लगा
ज़ख़्मे-उमीद कोई फिर से हरा होने लगा
हम तो मज़बूर थे इस दिल से कि जिसकी ज़िद पर
हमने उस रात के माथे पे सहर की तहरीर
जिसके दामन में अंधेरे के सिवा कुछ भी न था
हमने उस दश्त को ठहरा दिया फ़िरदौस नज़ीर
जिसमें जुज़ सनअते-ख़ूने-सरे-पा कुछ भी न था
दिल को ताबीर कोई और गवारा ही न थी
कुलफ़ते-ज़ीसत तो मंज़ूर थी हर तौर मगर
राहते-मरग किसी तौर गवारा ही न थी
(कोहराम बपा =कोलाहल पड़ा, रिन्दाने-बलानोश=
बहुत पीने वाले शराबी, सोज़े-खातिर=दिल की जलन,
दागे-हिरमान =बदकिसम्ती, मरहमे-यास=निराशा की
मरहम, मायल-ब-शिफ़ा=बीमारी ख़त्म होने लगी,
फ़िरदौस नज़ीर=सुरगी, जुज़ सनअते-ख़ूने-सरे-पा=
सिर और पैर का ख़ून करने के बग़ैर, कुलफ़ते-ज़ीसत=
ज़िंदगी का दुख, राहते-मरग=मौत का आराम)
This ghazal is from the Faiz Ahmad Faiz album’s Shaam-e-Shehr-e-Yaaran. Faiz Ahmad Faiz has recited his ghazal in his own voice. Listen to the audio on these streaming platforms –