मख़दूम मुहिउद्दीन जिन्हें शायर-ए-इन्क़िलाब (क्रांति का कवि) भी कहा जाता है, प्रस्तुत है उन्हीं की एक बेहद मशहूर ग़ज़ल “ये शहर अपना अजब शहर है”
ये शहर अपना
अजब शहर है के
रातों में
सड़क पे चलिए तो
सरगोशियाँ सी करता है
वो लाके ज़ख्म दिखाता है
राजे दिल की तरह
दरीचे बंद
गली चुप
निढाल दीवारें
कोढ़ा मोहरें-ब-लब
घरों में मैय्यतें ठहरी हुई हैं बरसों से
किराए पर