फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ भारतीय उपमहाद्वीप के एक विख्यात पंजाबी शायर थे. वे उर्दू शायरी के सबसे बड़े नाम में गिने जाते हैं. उनकी एक ग़ज़ल सुनिए – सज्जाद ज़हीर के नाम
न अब हम साथ सैरे-गुल करेंगे
न अब मिलकर सरे-मकत्ल चलेंगे
हदीसे-दिलबरां बाहम करेंगे
न ख़ूने-दिल से शरहे-ग़म करेंगे
न लैला-ए-सुख़न की दोस्तदारी
न ग़महा-ए-वतन पर असकबारी
सुनेंगे नग़मा-ए-ज़ंजीर मिलकर
न शब-भर मिलकर छलकायेंगे सागर
ब-नामे-शाहदे-नाज़ुकख़्यालां
ब-यादे-मस्तीए-चश्मे-ग़िज़ालां
ब-नामे-इम्बिसाते-बज़्मे-रिन्दां
ब-यादे-कुलफ़ते-अय्यामे-ज़िन्दां
सबा और उसका अन्दाज़े-तकल्लुम
सहर और उसका अन्दाज़े-तबस्सुम
फ़िज़ा में एक हाला-सा जहां है
यही तो मसनदे-पीरे-मुगां है
सहरगह उसी के नाम, साकी
करें इतमामे दौरे-जाम, साकी
बिसाते-बादा-ओ-मीना उठा लो
बढ़ा दो शमए-महफ़िल, बज़्मवालो
पियो अब एक जामे-अलविदाई
पियो, और पी के सागर तोड़ डालो
अर्थ
सरे-मकत्ल=शहादत की जगह
चश्मे-ग़िज़ालां=हिहरनी जैसी आँखें
इम्बिसाते=मस्ती और आनंद
कुलफ़ते-
अय्यामे-ज़िन्दां=जेल की मुसीबत
अन्दाजे-तकल्लुम=बात करने का ढंग
तबस्सुम=मुस्कान
हाला-सा=प्रभात मंडल जैसा
मसनदे-पीरे-मुगां=मस्तों के गुरू का आसन
इतमामे दौरे-जाम= जाम का दौर ख़त्म करो
बढ़ा दो=बुझा दो
This ghazal is from the Faiz Ahmad Faiz album’s Shaam-e-Shehr-e-Yaaran. Faiz Ahmad Faiz has recited his ghazal in his own voice. Listen to the audio on these streaming platforms –