रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ – अहमद फ़राज़

आज महफ़िल में पढ़िए अहमद फ़राज़ की एक बेहद मशहूर ग़ज़ल जिसे जगजीत सिंह ने भी अपनी आवाज़ में गाया है. ग़ज़ल का शीर्षक है – रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ.

Ahmad faraz

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रहे दुनिया ही निभाने के लिए आ

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ

कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मुहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ

एक उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिरिया से भी महरूम
ऐ राहत-ए-जाँ मुझ को रुलाने के लिए आ

अब तक दिल-ए-ख़ुश’फ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
ये आख़िरी शम्में भी बुझाने के लिए आ

माना कि मुहब्बत का छुपाना है मुहब्बत,
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ

जैसे तुझे आते हैं, ना आने के बहाने
वैसे ही किसी रोज़ ना जाने के लिये आ

अर्थ 

लज़्ज़त-ए-गिरिया = रोने का आनंद
महरूम= वंचित
राहत-ए-जाँ=मन को प्रसन्न करने वाली
पिन्दार-ए-मुहब्बत = मुहब्बत का अभिमान
मरासिम = मेल-जोल

Ranjish Hi Sahi Dil Dukhaane Ke Liye Aa Audio

Here is the ghazal version of the song which is sung by Mehdi Hasan –

Spotify, Jio Saavn and Gaana.