असरारुल हक़ मजाज़ उर्दू के प्रगतिशील विचारधारा से जुड़े रोमानी शायर के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं। लखनऊ से जुड़े होने से वे ‘मजाज़ लखनवी’ के नाम से भी प्रसिद्ध हुए।
‘मजाज़’ प्रगतिशील आंदोलन के प्रमुख हस्ती रहे अली सरदार जाफ़री के निकट संपर्क में थे और इसलिए प्रगतिशील विचारधारा से प्रभावित भी थे। स्वभाव से रोमानी शायर होने के बावजूद उनके काव्य में प्रगतिशीलता के तत्त्व मौजूद रहे हैं। उपयुक्त शब्दों का चुनाव और भाषा की रवानगी ने उनकी शायरी को लोकप्रिय बनाने में प्रमुख कारक तत्व की भूमिका निभायी है। उन्होंने बहुत कम लिखा, लेकिन जो भी लिखा उससे उन्हें काफी प्रसिद्धि मिली।
(Source: As read on Wikipedia)
Majaz Lakhnawi Shayari and Poem
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Some Latest Added Poems of Majaz Lakhnawi
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- सारा आलम गोश बर आवाज़ है – मजाज़
- ख़ुद दिल में रह के आँख से पर्दा करे कोई – मजाज़
- बर्बाद-ए-तमन्ना पे अताब और ज्यादा – मजाज़
- शहर की रात और मैं, नाशाद-ओ-नाकारा फिरूँ – मजाज़
- नर्म अहसासों के साथ क्रान्ति की आवाज – मजाज़
- नज़रे- अलीगढ़- मजाज़
- कमाल-ए-इश्क़ है दीवान हो गया हूँ मैं – मजाज़
- हुस्न को बे-हिजाब होना था – मजाज़
- इज़्न-ए-ख़िराम लेते हुए आसमाँ से हम – मजाज़
- कुछ तुझ को ख़बर है हम क्या क्या – मजाज़
Majaz Lakhnawi Chuninda Sher Shayari
- बहुत मुश्किल है दुनिया का सँवरना
तिरी ज़ुल्फ़ों का पेच-ओ-ख़म नहीं है बताऊँ क्या तुझे ऐ हम-नशीं किस से मोहब्बत है
मैं जिस दुनिया में रहता हूँ वो इस दुनिया की औरत हैकमाल-ए-इश्क़ है दीवाना हो गया हूँ मैं
ये किस के हाथ से दामन छुड़ा रहा हूँ मैंतुम्हीं तो हो जिसे कहती है नाख़ुदा दुनिया
बचा सको तो बचा लो कि डूबता हूँ मैंहुस्न को शर्मसार करना ही
इश्क़ का इंतिक़ाम होता हैतिरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा थाये मेरे इश्क़ की मजबूरियाँ मआज़-अल्लाह
तुम्हारा राज़ तुम्हीं से छुपा रहा हूँ मैंआप की मख़्मूर आँखों की क़सम
मेरी मय-ख़्वारी अभी तक राज़ हैमिरी बर्बादियों का हम-नशीनो
तुम्हें क्या ख़ुद मुझे भी ग़म नहीं हैदफ़्न कर सकता हूँ सीने में तुम्हारे राज़ को
और तुम चाहो तो अफ़्साना बना सकता हूँ मैं