असरारुल हक़ मजाज़ उर्दू के प्रगतिशील विचारधारा से जुड़े रोमानी शायर के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं. उनकी एक ग़ज़ल पढ़िए “बर्बाद-ए-तमन्ना पे अताब और ज्यादा”.
बर्बाद-ए-तमन्ना पे अताब और ज्यादा
हाँ मेरी मोहब्बत का जवाब और ज्यादा
रोएँ न अभी अहल-ए-नज़र हाल पे मेरे
होना ही अभी मुझको खराब और ज़्यादा
आवारा और मजनूँ ही पे मौकूफ नहीं कुछ
मिलने हैं अभी मुझको खिताब और ज़्यादा
उठेंगे अभी और भी तूफ़ान मेरे दिल से
देखूंगा अभी इश्क़ के मैं ख्वाब और ज़्यादा
टपकेगा लहू और मेरे दीदा-ए-तर से
धडकेगा दिल-ए-खाना-खराब और ज़्यादा
होगी मेरी बातों से उन्हें और भी हैरत
आयेगा उन्हें मुझसे हिजाब और ज़्यादा