असरारुल हक़ मजाज़ उर्दू के प्रगतिशील विचारधारा से जुड़े रोमानी शायर के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं. उनकी एक ग़ज़ल पढ़िए “ख़ुद दिल में रह के आँख से पर्दा करे कोई”.
ख़ुद दिल में रह के आँख से पर्दा करे कोई
हाँ लुत्फ़ जब है पाके भी ढूँढा करे कोई
तुम ने तो हुक्म-ए-तर्क-ए-तमन्ना सुना दिया,
किस दिल से आह तर्क-ए-तमन्ना करे कोई
दुनिया लरज़ गई दिल-ए-हिरमाँनसीब की,
इस तरह साज़-ए-ऐश न छेड़ा करे कोई
मुझ को ये आरज़ू वो उठायें नक़ाब ख़ुद,
उन को ये इन्तज़ार तक़ाज़ा करे कोई
रंगीनी-ए-नक़ाब में ग़ुम हो गई नज़र,
क्या बे-हिजाबियों का तक़ाज़ा करे कोई
या तो किसी को जुर्रत-ए-दीदार ही न हो,
या फिर मेरी निगाह से देखा करे कोई
होती है इस में हुस्न की तौहीन ऐ ‘मज़ाज़’,
इतना न अहल-ए-इश्क़ को रुसवा करे कोई