असरारुल हक़ मजाज़ उर्दू के प्रगतिशील विचारधारा से जुड़े रोमानी शायर के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं. उनकी एक ग़ज़ल पढ़िए “नर्म अहसासों के साथ क्रान्ति की आवाज”.
(1)
इश्क का जौके-नजारा मुफ्त को बदनाम है,
हुस्न खुद बेताब है जलवा दिखाने के लिए।
(2)
कहते हैं मौत से बदतर है इन्तिजार,
मेरी तमाम उम्र कटी इन्तिजार में।
(3)
कुछ तुम्हारी निगाह काफिर थी,
कुछ मुझे भी खराब होना था।
(4)
खिजां के लूट से बर्बादिए-चमन तो हुई,
यकीन आमादे -फस्ले-बहार कम न हुआ।
(5)
मुझको यह आरजू है वह उठाएं नकाब खुद,
उनकी यह इल्तिजा तकाजा करे कोई।