मोमिन ख़ाँ मोमिन एक मशहूर उर्दू कवि थे. इनकी शायरी में मुहब्बत, और रंगीन मिजाजी का असर दीखता है. प्रस्तुत है उनकी एक ग़ज़ल “मुझे चुप लगी मुद्दआ कहते-कहते”.
मुझे चुप लगी मुद्दआ कहते-कहते
रुके हैं वह क्या जाने क्या कहते-कहते
ज़बाँ गुँग है इश्क़ में गोश में कर है
बुरा सुनते-सुनते भला कहते-कहते
शबे-हिज्र में क्या हुजूमे-बला है
ज़बाँ थक गयी मरहबा कहते-कहते
गिला-हरज़हगर्दी का बेजा न थ कुछ
वह क्यों मुस्कुराये बजा कहते-कहते
सद्-अफ़सोस जाती रही वस्ल की शब
ज़रा ठहर ऐ बेवफ़ा कहते-कहते
चले तुम कहाँ मैंने तो दम लिया है
फ़साना-दिले-ज़ार का कहते-कहते
बुरा हो तेरा मरहमे-राज़ तूने
किया उनको रुसवा बुरा कहते-कहते
सितमहाये-गरदूँ मुफ़स्सल न पूछो
कि सर फिर गया माजरा कहते-कहते