इब्न-ए-इंशा पाकिस्तान के मशहूर वामपंथी कवि और लेखक हैं. उनकी एक बेहद खूबसूरत ग़ज़ल पढ़ें जिसका शीर्षक है “और तो कोई बस न चलेगा”.
और तो कोई बस न चलेगा हिज्र के दर्द के मारों का|
सुबह का होना दूभर कर दें रस्ता रोक सितारों का|
झूठे सिक्कों में भी उठा देते हैं अक्सर सच्चा माल,
शक्लें देख के सौदा करना काम है इन बंजारों का|
अपनी ज़ुबां से कुछ न कहेंगे चुप ही रहेंगे आशिक़ लोग,
तुम से तो इतना हो सकता है पूछो हाल बेचारों का|
एक ज़रा सी बात थी जिस का चर्चा पहुंचा गली गली,
हम गुमनामों ने फिर भी एहसान न माना यारों का|
दर्द का कहना चीख उठो दिल का तक़ाज़ा वज़’अ निभाओ,
सब कुछ सहना चुप चुप रहना काम है इजाज़त-दारों का|