परवीन शाकिर उर्दू शायरी में एक युग का प्रतिनिधित्व करती हैं. यहाँ प्रस्तुत है उनकी एक खूबसूरत ग़ज़ल “शाम आयी तेरी यादों के सितारे निकले”
शाम आयी तेरी यादों के सितारे निकले
शाम आयी तेरी यादों के सितारे निकले
रंग ही ग़म के नहीं नक़्श भी प्यारे निकले
रक्स जिनका हमें साहिल से बहा लाया था
वो भँवर आँख तक आये तो क़िनारे निकले
वो तो जाँ ले के भी वैसा ही सुबक-नाम रहा
इश्क़ के बाद में सब जुर्म हमारे निकले
इश्क़ दरिया है जो तैरे वो तिहेदस्त रहे
वो जो डूबे थे किसी और क़िनारे निकले
धूप की रुत में कोई छाँव उगाता कैसे
शाख़ फूटी थी कि हमसायों में आरे निकले