‘मीर’ दरिया है, सुने शेर ज़बानी उस की – मीर तक़ी ‘मीर’

ख़ुदा-ए-सुखन मोहम्मद तकी उर्फ मीर तकी “मीर” जो उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे, उनकी ग़ज़ल “‘मीर’ दरिया है, सुने शेर ज़बानी उस की” पढ़िए.

Meer Taqi Meer

‘मीर’ दरिया है, सुने शेर ज़बानी उस की
अल्लाह अल्लाह रे तबियत की रवानी उस की

मिंह तो बोछाड़ का देखा है बरसते तुमने
इसी अंदाज़ से थी अश्क-फ़िशानी उस की

बात की तर्ज़ को देखो तो कोई जदू था
पर मिली ख़ाक में सब सहर बयानी उस की

मर्सि-ए-दिल के कई कह के दिये लोगों ने
शहर-ए-दिल्ली में है सब पास निशानी उस की

अब गये उस के जो अफ़सोस नहीं कुछ हासिल
हैफ़ सद हैफ़ कि कुछ क़द्र न जानी उस की