Lai Hayat Aae Qaza(लायी हयात, आये, क़ज़ा) is a beatiful ghazal by Zauq. The ghazal depicts the lonliness and is beautifully sung by Begum Akhtar.
Song :- Lai Hayat Aae Qaza
Singer :- Begum Akhtar
Music Director :- Khaiyyaam
Lyricist :- Zauq
Lai Hayat Aae Qaza – Zauq
लायी हयात, आये, क़ज़ा ले चली, चले
अपनी ख़ुशी न आये न अपनी ख़ुशी चले
बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे
पर क्या करें जो काम न बे-दिल्लगी चले
कम होंगे इस बिसात पे हम जैसे बद-क़िमार
जो चाल हम चले सो निहायत बुरी चले
हो उम्रे-ख़िज़्र भी तो भी कहेंगे ब-वक़्ते-मर्ग
हम क्या रहे यहाँ अभी आये अभी चले
दुनिया ने किसका राहे-फ़ना में दिया है साथ
तुम भी चले चलो युँ ही जब तक चली चले
नाज़ाँ न हो ख़िरद पे जो होना है वो ही हो
दानिश तेरी न कुछ मेरी दानिशवरी चले
जा कि हवा-ए-शौक़ में हैं इस चमन से ‘ज़ौक़’
अपनी बला से बादे-सबा अब कहीं चले
