किस तरह आएगी जिस रोज़ क़ज़ा आएगी – फैज़ अहमद फैज़

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ भारतीय उपमहाद्वीप के एक विख्यात पंजाबी शायर थे. वे उर्दू शायरी के सबसे बड़े नाम में गिने जाते हैं. उनकी एक ग़ज़ल सुनिए – किस तरह आएगी जिस रोज़ क़ज़ा आएगी

Faiz ahmad Faiz album Shaam e shehr e yaaran

किस तरह आएगी जिस रोज़ क़ज़ा आएगी
शायद इस तरह कि जिस तौर कभी अव्वल शब
बेतलब पहले पहल मर्हमते-बोसा-ए-लब
जिससे खुलने लगें हर सम्त तिलिस्मात के दर
और कहीं दूर से अनजान गुलाबों की बहार
यक-ब-यक सीना-ए-महताब तड़पाने लगे

शायद इस तरह कि जिस तौर कभी आख़िरे-शब
नीम वा कलियों से सर सब्ज़ सहर
यक-ब-यक हुजरे महबूब में लहराने लगे
और ख़ामोश दरीचों से ब-हंगामे-रहील
झनझनाते हुए तारों की सदा आने लगे

किस तरह आएगी जिस रोज़ क़ज़ा आएगी
शायद इस तरह कि जिस तौर तहे नोके-सनाँ
कोई रगे वाहमे दर्द से चिल्लाने लगे
और क़ज़ाक़े-सनाँ-दस्त का धुँदला साया
अज़ कराँ ताबा कराँ दहर पे मँडलाने लगे
जिस तरह आएगी जिस रोज़ क़ज़ा आएगी
ख़्वाह क़ातिल की तरह आए कि महबूब सिफ़त
दिल से बस होगी यही हर्फ़े विदा की सूरत
लिल्लाहिल हम्द बा-अँजामे दिले दिल-ज़द्गाँ
क़लमा-ए-शुक्र बनामे लबे शीरीं-दहना

(नीम वा=अधखिला
ब-हंगामे-रहील=कूच समय
तहे नोके-सनाँ=तीर की नोक पर
वाहिमे=वहम
क़ज़ाक़े-सनाँ-दस्त=हाथ में तीर पकड़े डाकू
अज़ कराँ ताबा कराँ=इस किनारे से उस किनारे तक
दहर=ज़माना
लिल्लाहिल हम्द बा-अँजामे दिले दिल-ज़द्गाँ= अंत को दुखी दिल से ईश्वर की तारीफ़ ही
निकलेगी
क़लमा-ए-शुक्र बनामे लबे शीरीं-दहना=होंठों में से अति मिठास के साथ शुक्रिया का कलमा )

This ghazal is from the Faiz Ahmad Faiz album’s Shaam-e-Shehr-e-Yaaran. Faiz Ahmad Faiz has recited his ghazal in his own voice. Listen to the audio on these streaming platforms –