हम समझते हैं आज़माने को – मोमिन ख़ाँ मोमिन

मोमिन ख़ाँ मोमिन एक मशहूर उर्दू कवि थे. इनकी शायरी में मुहब्बत, और रंगीन मिजाजी का असर दीखता है. प्रस्तुत है उनकी एक ग़ज़ल “हम समझते हैं आज़माने को”.

Momin Khan Momin

हम समझते हैं आज़माने को
उज्र कुछ चाहिए सताने को

सुबहे-इशरत है न वह शामे-विसाल
हाय क्या हो गया ज़माने को

बुलहवस रोये मेरे गिरियाँ पे अब
मुँह कहाँ तेरे मुस्कुराने को

बर्क़ का आसमाँ पर है दिमाग़
फूँक कर मेरे आशियाने को

रोज़े-मशहर भी होश अगर आया
जायेंगे हम शराबख़ाने को

कोई दिन हम जहाँ में बैठे हैं
आसमाँ के सितम उठाने को

संग-ए-दर से तेरे निकाली आग
हमने दुश्मन का घर जलाने को

चल के का’बे में सिजदा कर ‘मोमिन’
छोड़ उस बुत के आस्ताने को