The ghazal “Be-Zaban Kaliyon Ka Dil Maila Kiya” by the urdu poet Wazir Agha. वज़ीर आग़ा एक बेहद प्रसिद्ध और विशिष्ट शायर हैं. सुनिए उनकी ग़ज़ल “बे-ज़बाँ कलियों का दिल मैला किया”.
बे-ज़बाँ कलियों का दिल मैला किया
बे-ज़बाँ कलियों का दिल मैला किया
ऐ हवा-ए-सुब्ह तू ने क्या किया
की अता हर गुल को इक रंगीं क़बा
बू-ए-गुल को शहर में रुस्वा किया
क्या तुझे वो सुब्ह-ए-काज़िब याद है
रौशनी से तू ने जब पर्दा किया
बे-ख़याली में सितारे चुन लिए
जगमगाती रात को अंधा किया
जाते जाते शाम यक-दम हंस पड़ी
इक सितारा देर तक रोया किया
रूठ कर घर से गया तू कितनी बार
क्या दर-ओ-दीवार ने पीछा किया
अपनी उर्यानी छुपाने के लिए
तू ने सारे शहर को नंगा किया
Be-Zaban Kaliyon Ka Dil Maila Kiya
Be-zaban kaliyon ka dil maila kiya
Ae hava-e-shubh tu ne kya kiya
Ki ata har gul ko ik rangin qaba
Bu-e-gul ko shahr men rusva kiya
Kya tujhe vo sub.h-e-kazib yaad hai
Roshni se tu ne jab parda kiya
Be-ḳhayali men sitare chun liye
Jagmagati raat ko andha kiya
Jaate jaate shaam yak-dam hans padi
Ik sitara der tak roya kiya
Ruth kar ghar se gaya tu kitni baar
Kya dar-o-divar ne pichha kiya
Apni uryani chhupane ke liye
Tu ne saare shahr ko nanga kiya