मोमिन ख़ाँ मोमिन एक मशहूर उर्दू कवि थे. इनकी शायरी में मुहब्बत, और रंगीन मिजाजी का असर दीखता है. प्रस्तुत है उनकी एक ग़ज़ल “उल्टे वो शिकवे करते हैं और किस अदा के साथ”.
उल्टे वो शिकवे करते हैं और किस अदा के साथ
उल्टे वो शिकवे करते हैं और किस अदा के साथ
बे-ताक़ती के ताने हैं उज़्र-ए-जफ़ा के साथ
बहर-अयादत आए वो लेकिन क़ज़ा के साथ
दम ही निकल गया मिरा आवाज़-ए-पा के साथ
बे-पर्दा ग़ैर पास उसे बैठा न देखते
उठ जाते काश हम भी जहाँ से हया के साथ
वो लाला-रू गया न हो गुलगश्त-ए-बाग़ को
कुछ रंग बू-ए-गुल के एवज़ है सबा के साथ
उस की गली कहाँ ये तो कुछ बाग़-ए-ख़ुल्द है
किस जाए मुझ को छोड़ गई मौत ला के साथ
आती है बू-ए-दाग़-ए-शब-ए-तार हिज्र में
सीना भी चाक हो न गया हो क़बा के साथ
गुलबाँग किस का मशवरा-ए-क़त्ल हो गया
कुछ आज बू-ए-ख़ूँ है वहाँ की हवा के साथ
थे वअ’दे से फिर आने के ख़ुश ये ख़बर न थी
है अपनी ज़िंदगानी उसी बेवफ़ा के साथ
कूचे से अपने ग़ैर का मुँह है मिटा सके
आशिक़ का सर लगा है तिरे नक़्श-ए-पा के साथ
अल्लाह रे गुमरही बुत ओ बुत-ख़ाना छोड़ कर
‘मोमिन’ चला है काबे को इक पारसा के साथ