नासिर काज़मी के ग़ज़लों में देश बटवारे का दुःख झलकता है, साथ ही उनके कलाम में उनका युग बोलता हुआ दिखाई देता है. आज पढ़िए उनकी एक ग़ज़ल “तेरे मिलने को बेकल हो गये हैं”.
तेरे मिलने को बेकल हो गये हैं
मगर ये लोग पागल हो गये हैं
बहारें लेके आये थे जहाँ तुम
वो घर सुनसान जंगल हो गये हैं
यहाँ तक बढ़ गये आलाम-ए-हस्ती
कि दिल के हौसले शल हो गये हैं
कहाँ तक ताब लाये नातवाँ दिल
कि सदमे अब मुसलसल हो गये हैं
निगाह-ए-यास को नींद आ रही है
मुसर्दा पुरअश्क बोझल हो गये हैं
उन्हें सदियों न भूलेगा ज़माना
यहाँ जो हादसे कल हो गये हैं
जिन्हें हम देख कर जीते थे “नासिर”
वो लोग आँखों से ओझल हो गये हैं