तेरे दीवाने तिरी चश्म ओ नज़र से पहले – मख़दूम मुहिउद्दीन

मख़दूम मुहिउद्दीन जिन्हें शायर-ए-इन्क़िलाब (क्रांति का कवि) भी कहा जाता है, प्रस्तुत है उन्हीं की एक बेहद मशहूर ग़ज़ल “तेरे दीवाने तिरी चश्म ओ नज़र से पहले”

Makhdoom Mohiuddin

तेरे दीवाने तिरी चश्म ओ नज़र से पहले

तेरे दीवाने तिरी चश्म ओ नज़र से पहले
दार से गुज़रे तिरी राहगुज़र से पहले

बज़्म से दूर वो गाता रहा तन्हा तन्हा
सो गया साज़ पे सर रख के सहर से पहले

इस अँधेरे में उजालों का गुमाँ तक भी न था
शो’ला-रू शोला-नवा शोला-नज़र से पहले

कौन जाने कि हो क्या रंग-ए-सहर रंग-ए-चमन
मय-कदा रक़्स में है पिछले पहर से पहले

निकहत-ए-यार से आबाद है हर कुंज-ए-क़फ़स
मिल के आई है सबा उस गुल-ए-तर से पहले