रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए – मिर्ज़ा ग़ालिब

Presenting the ghazal “Rone Se Aur Ishq Mein Bebaak”, written by the Urdu Poet Mirza Ghalib.

Mirza Ghalib Shayari - Urdu Shayari Ghazal and Sher of Ghalib

रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए

रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए
धोए गए हम इतने कि बस पाक हो गए

सर्फ़-ए-बहा-ए-मय हुए आलात-ए-मय-कशी
थे ये ही दो हिसाब सो यूँ पाक हो गए

रुस्वा-ए-दहर गो हुए आवारगी से तुम
बारे तबीअतों के तो चालाक हो गए

कहता है कौन नाला-ए-बुलबुल को बे-असर
पर्दे में गुल के लाख जिगर चाक हो गए

पूछे है क्या वजूद ओ अदम अहल-ए-शौक़ का
आप अपनी आग के ख़स-ओ-ख़ाशाक हो गए

करने गए थे उस से तग़ाफ़ुल का हम गिला
की एक ही निगाह कि बस ख़ाक हो गए

इस रंग से उठाई कल उस ने ‘असद’ की ना’श
दुश्मन भी जिस को देख के ग़मनाक हो गए – ग़ालिब