शमशेर बहादुर सिंह सम्पूर्ण आधुनिक हिन्दी कविता में एक अति विशिष्ट कवि के रूप में मान्य हैं। हिन्दी कविता में निरन्तर प्रयोगशील रहने वाले, बिम्ब को काव्य-भाषा के रूप में प्रयुक्त करने वाले, प्रेम और सौन्दर्य के कवि तथा अनूठे माँसल ऐन्द्रिय बिम्बों के रचयिता होने पर भी शमशेर आजीवन प्रगतिवादी विचारधारा से जुड़े रहे। दूसरा सप्तक से शुरुआत कर ‘चुका भी हूँ नहीं मैं’ के लिए साहित्य अकादमी सम्मान पाने वाले शमशेर ने कविता के अलावा निबन्ध, कहानी एवं डायरी विधा में भी लिखा तथा अनुवाद-कार्य के अतिरिक्त हिन्दी-उर्दू शब्दकोश का संपादन भी किया।
शमशेर सौन्दर्य के अनूठे चित्रों के स्रष्टा के रूप में हिंदी में प्रायः सर्वमान्य हैं। आरंभ में उन्होंने टेकनीक में एज़रा पाउण्ड को अपना सबसे बड़ा आदर्श बताया था। बाद में निराला तथा पाउण्ड के अतिरिक्त वर्ले, लारेन्स, इलियट तथा अन्य कई कवियों की शैली का भी प्रभाव उन्होंने स्वीकार किया है। ये कवि भिन्न विचारधारा के थे। अतः इलियट और एज़रा पाउण्ड के शिल्प और कुछ हद तक भाव सौंदर्य के प्रति आकृष्ट होने के बावजूद विचारधारा में शमशेर उनसे दूर रहते थे।
(Source: As read on Wikipedia)
Shamsher Bahadur Singh Poems
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- यह विवशता – शमशेर बहादुर सिंह
- मेरे मन के राग नए-नए – शमशेर बहादुर सिंह
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- कहो तो क्या न कहें, पर कहो तो क्योंकर हो – शमशेर बहादुर सिंह
- छिप गया वह मुख – शमशेर बहादुर सिंह
- चुका भी हूँ मैं नहीं – शमशेर बहादुर सिंह
- धूप कोठरी के आइने में खड़ी – शमशेर बहादुर सिंह
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