कहो तो क्या न कहें, पर कहो तो क्योंकर हो – शमशेर बहादुर सिंह

शमशेर बहादुर सिंह सम्पूर्ण आधुनिक हिन्दी कविता में एक अति विशिष्ट कवि के रूप में मान्य है. उनकी एक चर्चित कविता पढ़े – कहो तो क्या न कहें, पर कहो तो क्योंकर हो

Shamsher Bahadur Singh

कहो तो क्‍या न कहें, पर कहो तो क्‍योंकर हो,
जो बात-बात में आ जायँ वो, तो क्‍योंकर हो!

हमारी बात हमीं से सुनो तो कैसा हो,
मगर ये जाके उन्‍हीं से कहो तो क्‍योंकर हो!

ये बेदिली ही न हो संगे-आस्‍तान-ए-यार,
वगरना इश्‍क की मंजिल ये हो तो क्‍योंकर हो!

करीबे-हुस्‍न जो पहुँचा तो गम कहाँ पहुँचा-
हमीं को होश नहीं, आपको तो क्‍योंकर हो!

खयाल हो कि मेरे दिल का वहम हो,
आखिर तुम्‍हीं जो एक न अपने बनों, तो क्‍योंकर हो!

जमाना तुम हो- जहाँ तुम हो- जिंदगी तुम हो
जो अपनी बात पे कायम रहो, तो क्‍योंकर हो!

हमारा बस है कोई, आह की, हुए खामोश
मगर जो ये भी सहारा न हो तो क्‍योंकर हो!

हरेक तरह वही आरजू बनें मेरी
ये जिंदगी का बहाना न हो, तो क्‍योंकर हो!

ये सब सही है मगर ऐ मेरे दिले-नाशाद
कोई भी गम के सिवा दोस्‍त हो तो क्‍योंकर हो!

ये साँस में जो उसी नम की अटक-सी है,
वो जिंदगी से फरामोश हो तो क्‍योंकर हो!

जो आरजू में नहीं, अब वो साँस में कुछ है,
वो, आह, दिल से फरामोश हो तो क्‍योंकर हो!

हजार हम उसे चाहें कि अब न चाहें और,
जो साँस-साँस में रम जाय वो, तो क्‍योंकर हो!