शमशेर बहादुर सिंह सम्पूर्ण आधुनिक हिन्दी कविता में एक अति विशिष्ट कवि के रूप में मान्य है. उनकी एक चर्चित कविता पढ़े – ओ मेरे घर
ओ मेरे घर
ओ हे मेरी पृथ्वी
साँस के एवज़ तूने क्या दिया मुझे
-ओ मेरी माँ ?
तूने युद्ध ही मुझे दिया
प्रेम ही मुझे दिया क्रूरतम कटुतम
और क्या दिया
मुझे भगवान दिए कई-कई
मुझसे भी निरीह मुझसे भी निरीह !
और अद्भुत शक्तिशाली मकानिकी प्रतिमाएँ !
ऐसी मुझे ज़िंदगी दी
ओह
आँखें दीं जो गीली मिट्टी का बुदबुद-सी हैं
और तारे दिए मुझे अनगिनती
साँसों की तरह
अनगिनती इकाइयों में
मुझसे लगातार दूर जाते
मौत की व्यर्थ प्रतीक्षाओं-से !
और दी मुझे एक लंबे नाटक की
हँसी
फैली हुई
दर्शकशाला के इस छोर से उस छोर तक
लहराती कटु-क्रर
फिर मुझे जागना दिया, यह कहकर कि
लो और सोओ
और वही तलवार अँधेरे की
अंतिम लोरियों के बजाय !
इन्सान के अँखौटे में डालकर मुझे
सब कुछ तो दे दियाः
जब मुझे मेरे कवि का बीज दिया कटु-तिक्त।
फिर एक ही जन्म में और क्या-क्या
चाहिए !